अति राजनीतिक चर्चा को हिन्दू जागरण समझने की भूल

अति राजनीतिक चर्चा को हिन्दू जागरण समझने की भूल

सोशल मीडिया के आगमन के साथ राजनीतिक जागरूकता और जानकारी में अभूतपूर्व वृद्धि हुई। लोग हर घटना पर अपने विचार व्यक्त करने लगे। इसके परिणामस्वरूप राजनीति पर चर्चा करने और स्वयं को राजनीतिक विशेषज्ञ समझने की प्रवृत्ति बढ़ी।

भारतीय राजनीति का स्वभाव ऐसा रहा है कि वह प्रायः हिंदू विरोधी रही है। इसी पृष्ठभूमि में हिंदुत्व विषयक राजनीतिक चर्चा को लोग हिंदुत्व जागरण मानने लगे। यह भ्रम तेजी से फैला और लोग यह मान बैठे कि केवल राजनीतिक बहसों में भाग लेने से वे हिंदुत्व की सेवा कर रहे हैं।

ज्ञानम भारम् क्रियाम विना

इस स्थिति का परिणाम यह हुआ कि हिंदू-विरोधी और हिंदू-केंद्रित राजनीति की बहसें हिंदू जागरण का पर्याय बन गईं। हर धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक घटना को राजनीति से जोड़कर देखने का प्रचलन बढ़ा। ऐसे में लोग, चाहे किसी भी क्षेत्र या पृष्ठभूमि से हों—व्यापारी, डॉक्टर, शिक्षक, या प्रतियोगी परीक्षा में असफल व्यक्ति—स्वयं को हिंदुत्व सेवक मानने लगे।

कुछ ने तो यहां तक कल्पना कर ली कि वे सरकार के नीतिगत सलाहकार हैं, और कुछ ने संघ के नेतृत्व तक में परिवर्तन की कल्पना कर डाली। परिणामस्वरूप, जब उनकी उम्मीदें पूरी नहीं हुईं, तो वे कुंठित होकर विद्रोही स्वर अपनाने लगे।

हिंदुत्व जागरण: एक सतत और तपस्वी प्रक्रिया

हिंदुत्व जागरण कोई नई घटना नहीं है। यह आदिकाल से चल रहा है। यह जागरण केवल वही कर सका है जो गैर-राजनीतिक, समन्वयवादी और सृजनशील रहा है। ऐसे प्रयास तप, धैर्य और सृजनशीलता पर आधारित होते हैं।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का प्रभाव भी इसी सतत साधना का परिणाम है। संघ का कार्य बड़े नेताओं, पदों या भाषणों से नहीं बढ़ा, बल्कि साधारण कार्यकर्ताओं की सतत साधना और समर्पण से आगे बढ़ा है। ऐसे कार्यकर्ता न अधिक ज्ञानी थे, न ही अधीर, बल्कि ठोस और क्रियात्मक थे।

संघ के कार्यकर्ताओं ने कठिनाइयों को सहा और समाज ने उन्हें हर प्रकार से परखा। गांव-गांव जाकर उन्होंने अपनी तपस्या से समाज का विश्वास अर्जित किया। वे न केवल उपदेश देते थे, बल्कि समाज के काम में हाथ बंटाकर लोगों का दिल जीतते थे।

हिंदुत्व सेवा: चर्चा नहीं, कर्म आवश्यक है

हिंदू समाज केवल उन्हीं का अनुसरण करता है जिनके पीछे तप और त्याग की कहानी हो। उपदेश देना, फिर सलाहकार बन जाना, और अंततः विद्रोही बनकर नेतृत्व को कोसना, यह हिंदू जागरण नहीं है।

वास्तविक हिंदू जागरण वह है जो समाज के बीच रहकर, समाज की कठिनाइयों में सहभागी बनकर, अपने लक्ष्य के लिए सतत प्रयास करता है। यह जागरण केवल वाणी से नहीं, कर्म से संभव है।

अतः हिंदू जागरण का अर्थ केवल राजनीतिक चर्चा करना नहीं है। यह एक सृजनशील, समर्पित और तपस्वी प्रयास है, जो समाज के हृदय परिवर्तन के माध्यम से हिंदू संस्कृति और मूल्यों को पुनः प्रतिष्ठित करता है।