हिंदुओं संभल जाओ वरना संभल जैसे हालात हो जाएँगे।

हिंदुओं संभल जाओ वरना संभल जैसे हालात हो जाएँगे।

जागरूकता के सभी दावे, सुरक्षा के सभी आश्वासन और बड़े संगठनों के तमाम विस्तार के बावजूद मु^^^मानों को जो करना होता है वे कर लेते है।
थोड़ा निरपेक्ष होकर देखिए, वे अपना काम चुपचाप कर रहे हैं।
हिन्दू समाज: भीड़ से अनुशासित संगठन तक की यात्रा

हिन्दू समाज: भीड़ से अनुशासित संगठन तक की यात्रा

हिन्दू समाज में लाखों की भीड़ तो इकट्ठा हो जाती है, लेकिन अनुशासित संगठन के रूप में सामूहिक आचरण नहीं कर पाती। व्यक्तिगत रूप से बुद्धिमान और सक्षम होने के बावजूद सामूहिक व्यवहार में अव्यवस्था देखी जाती है।