आज के डिजिटल युग में, सोशल मीडिया हमारे जीवन का एक अभिन्न अंग बन चुका है। लेकिन क्या आपने कभी महसूस किया है कि यह प्लेटफॉर्म धीरे-धीरे नकारात्मकता का अड्डा बनता जा रहा है? हाल के दिनों में यह देखा गया है कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर नकारात्मक पोस्टों की भरमार हो गई है और सकारात्मक सामग्री की पहुंच (रीच) कम होती जा रही है। क्या यह मात्र एक संयोग है, या इसके पीछे कोई बड़ी योजना है ?
AI और सोशल मीडिया: मनोवैज्ञानिक प्रभाव
कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) का उपयोग सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर बड़े पैमाने पर किया जा रहा है। ये AI एल्गोरिदम हमारे व्यवहार, रुचियों और मानसिकता को समझकर उसी के अनुसार सामग्री प्रदर्शित करते हैं। लेकिन यह तकनीक न केवल हमारी पसंद-नापसंद का विश्लेषण करती है, बल्कि हमारी सोच और भावनाओं को भी प्रभावित कर सकती है।
नकारात्मकता का फैलाव और मानसिक प्रभाव
1. नकारात्मक सामग्री की अधिकता:
एल्गोरिदम द्वारा ऐसी सामग्री को प्राथमिकता दी जा रही है जो यूजर की भावनाओं को उत्तेजित करे। इससे न केवल नकारात्मकता बढ़ रही है, बल्कि लोग अवसाद और चिंता जैसी मानसिक समस्याओं से ग्रस्त हो रहे हैं।
2. सकारात्मकता की पहुंच कम:
सकारात्मक और प्रेरणादायक पोस्टों की पहुंच सीमित हो रही है। ऐसे में हास्य-प्रेमी और सकारात्मक लोग भी धीरे-धीरे नकारात्मक पोस्ट करने लगे हैं, जिससे एक दुष्चक्र बनता जा रहा है।
3. विश्वास का संकट:
जिन लोगों पर भरोसा किया जाता था, वे भी दिग्भ्रमित और संदिग्ध लगने लगे हैं। वैचारिक शत्रुता के अभाव में लोग अपनों की खामियां निकालकर आलोचना कर रहे हैं।
4. अराजक और असंयमित सामग्री:
रील्स और शॉर्ट वीडियो जैसे कंटेंट के माध्यम से मर्यादा और संयम तोड़ने वाली सामग्री की भरमार है। इन वीडियो में छोटी बालिकाओं और युवाओं का गलत तरीके से उपयोग हो रहा है, जिससे समाज में अराजकता और अनैतिकता को बढ़ावा मिल रहा है।
मनोवैज्ञानिक षड्यंत्र: रोगी बनाने की साजिश?
ऐसा लगता है कि सोशल मीडिया अब सिर्फ मनोरंजन का साधन नहीं रहा। यह हमारे मानसिक स्वास्थ्य को कमजोर करने का जरिया बन चुका है। जो पोस्ट हमें प्रसन्नता और जागरूकता देने के लिए दिख रही हैं, वे संभवतः हमें मानसिक रूप से रोगी बनाने का षड्यंत्र हो सकती हैं।

उदाहरण:
• सार्वजनिक स्थलों पर असलील हरकतों का सामान्यीकरण:
डिजिटल माध्यमों के जरिए ऐसे विषयों को सामान्य बनाया जा रहा है, जो मानसिक और शारीरिक ऊर्जा के ह्रास का कारण बनते हैं।
• उत्तेजक सामग्री की बढ़ती उपलब्धता:
ऐसी सामग्री का उद्देश्य मन को विचलित और कमजोर करना है, जिससे व्यक्ति आत्मनियंत्रण खो दे।
मोबाइल और जीवन की विषाक्तता
फोन और सोशल मीडिया के अत्यधिक उपयोग ने हमारे जीवन को विषाक्त बना दिया है। लोग क्षणिक तृप्ति के लिए ऐसी सामग्री की ओर आकर्षित हो रहे हैं, जो उन्हें लंबे समय तक मानसिक रूप से कमजोर बनाती है।

समस्या के समाधान की दिशा में कदम:
1. मोबाइल और सोशल मीडिया का सीमित उपयोग:
कमजोर मन वाले लोगों को सोशल मीडिया और मोबाइल से दूरी बनानी चाहिए।
2. आत्मनियंत्रण और साधना:
मानसिक शक्ति को बढ़ाने के लिए ध्यान, योग और आत्म-संयम को अपनाना चाहिए।
3. AI पर नियंत्रण:
सरकार और संस्थाओं को AI एल्गोरिदम की पारदर्शिता सुनिश्चित करनी चाहिए, ताकि नकारात्मकता और मानसिक ह्रास को रोका जा सके।
4. सकारात्मक सामग्री को बढ़ावा:
सकारात्मक और प्रेरणादायक कंटेंट की पहुंच बढ़ाने के प्रयास होने चाहिए।
निष्कर्ष
सोशल मीडिया का उद्देश्य लोगों को जोड़ना और मनोरंजन प्रदान करना था। लेकिन आज यह नकारात्मकता, असंयम और मानसिक समस्याओं का माध्यम बनता जा रहा है। AI द्वारा संचालित एल्गोरिदम हमारे जीवन को गहराई से प्रभावित कर रहे हैं। ऐसे में हमें सतर्क रहते हुए अपने डिजिटल जीवन को नियंत्रित करने की आवश्यकता है। जागृत रहें, संयमित रहें और सकारात्मकता को बढ़ावा दें।