एक ओर भारत देश महाकुंभ के पावन पर्व में भक्ति और आस्था के रस में डूबा हुआ है, जहां भारतीय संस्कृति की दिव्यता विश्वपटल पर अपनी छाप छोड़ रही है। वहीं, दूसरी ओर आजकल कुछ तथाकथित कंटेंट क्रिएटर्स समाज में अभद्रता की सभी सीमाएँ लांघ रहे हैं। यह एक अत्यंत विचारणीय विषय है।
आज के डिजिटल युग में कई कंटेंट निर्माता प्रारंभ में अपनी पहचान बनाने तथा फॉलोअर्स बढ़ाने के लिए भीख माँगता हैं। वे हरसंभव माध्यम से लोगों का ध्यान आकर्षित करने का प्रयास करते हैं। किंतु जब वे प्रसिद्धि और व्यापक दर्शक संख्या प्राप्त कर लेते हैं, तब वे समाज में अनैतिकता और अभद्रता फैलाने से भी परहेज़ नहीं करते।
इंडियाज गॉट टेलेंट पॉडकास्ट
हाल ही में “इंडियाज गॉट टेलेंट” नामक पॉडकास्ट शो चर्चा का विषय बना हुआ है। इस शो में रणवीर इलाहाबदिया, समय रैना और उनके कुछ छिछोरे सहयोगियों ने जिस प्रकार की अमर्यादित और अभद्रता का प्रस्तुतीकरण किया है। वह एक सभ्य समाज की कल्पना से परे है।

देश के विभिन्न हिस्सों से कंटेंट क्रिएटर्स को आमंत्रित किया जाता है, और फिर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर फूहड़ता परोसी जाती है। खुले मंच पर, माइक के माध्यम से माता-पिताके संभोग को देखना तथा दूसरों को भी ऐसा करने के लिए प्रेरित करना, एक अत्यंत निंदनीय कृत्य है। इसके अतिरिक्त, गुप्तांगों एवं अन्य निजी विषयों पर विस्तृत अश्लील चर्चा की जाती है, जो किसी भी दृष्टिकोण से उचित नहीं कही जा सकती।
यह सब केवल अधिक से अधिक दर्शकों को आकर्षित करने तथा कंटेंट को बेचने के उद्देश्य से किया जाता है। इनके लिए यह कोई मायने नहीं रखता कि यह कंटेंट समाज पर कितना नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। यदि प्रसिद्धि पाने के लिए इन्हें मंच पर नग्न भी होना पड़े, तो वे उससे भी परहेज नहीं करते।
इससे समाज में नकारात्मक प्रभाव पड़ता है जिससे अश्लीलता, व्यभिचार, दुराचार, बलात्कार, अभद्रता, अत्याचार, फूहड़ता और अनैतिकता को बढ़ावा मिलता है तथा समाज सांस्कृतिक पतन की और अग्रसर हो रहा है।

सरकारी नियंत्रण की कमी
आज के समय में OTT प्लेटफॉर्म्स, पॉडकास्ट, सोशल मीडिया और यूट्यूब जैसे डिजिटल माध्यमों पर फैलाई जा रही अभद्रता को रोकने के लिए कोई कठोर कानून नहीं है। जिसके कारण कोई भी व्यक्ति मनमानी तरीके से अनैतिक एवं अनुचित सामग्री प्रसारित कर सकता है। इस दिशा में सरकार को ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है।
सजगता
हमें स्वयं भी सचेत रहने की आवश्यकता है कि हमारे परिवार के बच्चे कहीं इस प्रकार के फूहड़ कंटेंट के प्रभाव में तो नहीं आ रहे हैं। साथ ही, समाज को नैतिक मूल्यों की रक्षा के लिए सक्रिय भूमिका निभानी होगी। यदि इस समस्या को अभी नियंत्रित नहीं किया गया, तो आने वाली पीढ़ियाँ एक विकृत सामाजिक वातावरण में पले-बढ़ेंगी। अतः, यह हम सबकी जिम्मेदारी है कि हम अपने परिवार और समाज को इस नकारात्मक प्रभाव से बचाने के लिए सचेत रहें और उचित कदम उठाएँ।