जागरूकता के सभी दावे, सुरक्षा के सभी आश्वासन और बड़े संगठनों के तमाम विस्तार के बावजूद मु^^^मानों को जो करना होता है वे कर लेते है।
थोड़ा निरपेक्ष होकर देखिए, वे अपना काम चुपचाप कर रहे हैं।
सबकुछ, बदस्तूर जारी है। जिसको जब चाहे फंसाना हो, टपकाना हो, धन उगाही हो या दास दासी बनाकर भोगना हो। कुछ भी नहीं बदला बल्कि फ्रीक्वेंसी बढ़ रही है।
खबर आती है या नहीं भी आती है, अखबार के किसी कोने में छोटी सी न्यूज और फिर सब नॉर्मल।
हत्या, बलात्कार, गौकशी, आतंकवाद, ब्लैकमेल, उगाही, LZ, भीतर ही भीतर जारी है।
बदलाव हुआ है तो यह कि वे अपने कार्य को बहुत स्मार्ट तरीके से कर रहे हैं। संसाधन जुटा रहे है। अर्थतंत्र की जड़ पर कब्जा कर रहे हैं। महिला और धन, जो कि उनकी पहली पसंद और मुख्य प्रेरणा है, सिस्टम ऐसा है कि अपने आप उनकी झोली भर रही है।
कुम्भ की भीड़ या नागा बाबाओं के झुंड देखकर जो यह सोचते हैं कि वे सुरक्षित हैं, गलतफहमी है।

बस, ट्रेन, ट्रैवलिंग, बाजार, सार्वजनिक संपत्ति, फेरी, रेहड़ी, होमसर्विस, उद्योग, स्टेशनों पर ऑटो संचालन, ओला उबेर, कैब, जोमैटो, ट्रेवल एजेंसियां, शिल्प, कुटीर उद्योग, सब्सिडी, टोलटैक्स नाके, प्रमुख शहरों की प्रमुख इंडस्ट्री, “सबकुछ” उनके कब्जे में भले ही नहीं हो लेकिन वे बड़ी तेजी से मल्टीटास्क लेकर छा रहे है।
बहुउद्देश्यीय ऐसे कि कोई किसी घर में प्लम्बर या इलेक्ट्रिशियन बनकर गया तो पैसे तो कमाता ही है, उनके फोन नम्बर भी ले आता है। घर में कितने लोग है, क्या है यह सब एक नजर से ही पता कर लेता है। और कहीं कोई छिद्र या ढीलापन है तो वह अपने ऊपरी रणनीतिकारों तक बात भी पहुंचाता है।
किस टारगेट को कैसे सेट करना है यह पूरा साइंस है उनके पास।
फिर जो लाभ होता है उसमें प्रमुखहिस्सा उसके प्रथम सूचना दाता को ही मिलती है।

पूरी ईमानदारी से और पूरी रणनीति से काम चल रहा है।
वे भले ही पंचर वाले दिख रहे हैं लेकिन उनका कैलकुलेशन गजब का है। कोई सामान्य नागरिक एक लाख का धंधा कर दस हजार कमाता है लेकिन वे इसके उलट 10 हजार लगाकर लाख लूट रहे हैं। ऐसी खतरनाक प्रतियोगिता का मुकाबला मुख्यधारा के बाजार से कभी सम्भव नहीं है।
मुझे आपको कहना था सो कह दिया, कोई इस गलतफहमी में न रहे कि वे कमजोर हो रहे हैं।
कुमार एस…