हिन्दू समाज: भीड़ से अनुशासित संगठन तक की यात्रा

हिन्दू समाज: भीड़ से अनुशासित संगठन तक की यात्रा

हिन्दू समाज में लाखों की भीड़ तो इकट्ठा हो जाती है, लेकिन अनुशासित संगठन के रूप में सामूहिक आचरण नहीं कर पाती। व्यक्तिगत रूप से बुद्धिमान और सक्षम होने के बावजूद सामूहिक व्यवहार में अव्यवस्था देखी जाती है। इसी कारण, कई बार बड़े आयोजनों में भीड़ नियंत्रित नहीं हो पाती, जिससे अव्यवस्था और अराजकता उत्पन्न हो जाती है।

महाकुंभ

1. हिन्दू समाज की समस्या: अनुशासनहीनता

हिन्दू समाज का संगठन तभी प्रभावी होगा, जब वह भीड़ से आगे बढ़कर अनुशासित संगठन बने। लेकिन वर्तमान स्थिति में कई प्रमुख समस्याएँ देखने को मिलती हैं:

• व्यक्तिगत सोच— “मैं अकेला क्या कर सकता हूँ?”

• अनुशासन की कमी— हर व्यक्ति केवल अपनी चिंता करता है।

• भीड़ में अविवेकी तत्व— कुछ लोग जानबूझकर अराजकता फैलाते हैं।

• मीडिया की भूमिका— कई बार मीडिया भी माहौल को और अधिक भड़काने का काम करती है।

• आपसी अविश्वास— समाज में समन्वय की कमी के कारण धैर्य समाप्त हो जाता है।

2. तिलक की सभा: अनुशासनहीनता का ऐतिहासिक उदाहरण

लगभग सवा सौ वर्ष पूर्व बाल गंगाधर तिलक की सभा में कुछ लोगों ने मेंढक उछालकर “साँप-साँप” चिल्लाना शुरू कर दिया। इससे सभा में भगदड़ मच गई और आयोजन विफल हो गया।

बाद में डॉ. हेडगेवार ने आयोजकों से चर्चा की, तो अधिकतर का उत्तर था—

“मैं अकेला क्या कर सकता था?”

यही हिन्दू समाज की सबसे बड़ी कमजोरी रही है— लाखों की भीड़ में भी हर व्यक्ति स्वयं को अकेला ही समझता है।

3. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ: अनुशासन की परंपरा

संघ की स्थापना के पीछे समाज में अनुशासन की कमी एक बड़ा कारण बनी। संघ ने प्रारंभ में भीड़ बढ़ाने के बजाय आने वाले व्यक्तियों के व्यवस्थापन पर ध्यान दिया।

संघ के प्रमुख सिद्धांत:

• प्रबंधन पर ध्यान— दस लोग आएँ या दस लाख, हर आयोजन की बारीकियों पर विचार किया जाता है।

• व्यवस्थित योजना— बैठने की जगह, मंच की ऊँचाई, भोजन, पानी, शौचालय, सुरक्षा आदि की समुचित व्यवस्था की जाती है।

• निरंतर समीक्षा— रात और सुबह की बैठकों में योजना की समीक्षा होती है।

4. लोकल मेले में सफल प्रबंधन का उदाहरण

कई बड़े आयोजनों में भोजन वितरण में अव्यवस्था देखी जाती है।

एक स्थानीय मेले में भी हर वर्ष भोजन की व्यवस्था बिगड़ जाती थी।

• भीड़ इतनी अधिक हो जाती थी कि खाने के लिए छीना-झपटी जैसी स्थिति बन जाती थी।

• आखिरकार, आयोजकों को भोजन वितरण ही रद्द करना पड़ा।

बाद में जब यह कार्य शिशु मंदिर और सीमाजन मंच के विद्यार्थियों को सौंपा गया, तो आज भी वह व्यवस्था सफलतापूर्वक चल रही है।

प्रयागराज

5. अव्यवस्था के सामान्य कारण

• शादी-ब्याह में हर बार पनीर की सब्जी कम पड़ना— योजना की कमी।

• भीड़ को नियंत्रित करने के लिए बैरिकेटिंग और कतारें बनानी पड़ती हैं— अनुशासनहीनता।

• अव्यवस्थित भीड़ के कारण दुर्घटनाएँ— आपातकालीन योजना का अभाव।

6. जागरूकता और सतर्कता आवश्यक

1. भीड़ देखकर खुद भीड़ का हिस्सा न बनें।

2. मीडिया प्रचार के आधार पर किसी आयोजन में जाने से बचें।

3. आयोजकों की क्षमता से अधिक भीड़ न जुटाने की प्रवृत्ति पर ध्यान दें।

4. आपातकालीन परिस्थितियों के लिए तैयारी होनी चाहिए।

7. हिन्दू समाज का संगठन: दैनिक और साप्ताहिक अभ्यास आवश्यक

हिन्दू समाज के लिए यह आवश्यक है कि वह दैनिक या साप्ताहिक मिलन का अभ्यास करे, अन्यथा वह कभी भी संगठन से भीड़ में बदल सकता है।

• यह भी समझना होगा कि उनके शत्रु कैसे संगठित होकर योजनाएँ बना रहे हैं।

• संगठन और प्रबंधन स्वयं में एक शास्त्र है, जिसका अभ्यास हिन्दू समाज को करना ही होगा।

निष्कर्ष

यदि हिन्दू समाज अनुशासन, संगठन और नागरिक शिष्टाचार को नहीं अपनाता, तो वह केवल एक भीड़ बना रहेगा। संघ और अन्य संगठनों के प्रयासों से समाज में परिवर्तन आ रहा है, लेकिन यह परिवर्तन तभी स्थायी होगा जब हर व्यक्ति “मैं अकेला क्या कर सकता हूँ?” के स्थान पर “मैं क्या कर सकता हूँ?” सोचने लगेगा।