स्लो पॉइज़न एक ऐसा प्रभावी अस्त्र है, जिसका प्रयोग इतने सूक्ष्म और योजनाबद्ध ढंग से किया जाता है कि जिसे इसका सेवन कराया जा रहा होता है, उसे इसका आभास तक नहीं होता। इसे व्यक्ति की आदत में शामिल करने के लिए उसमें रुचि उत्पन्न की जाती है, जिससे वह इसके पीछे छिपे गुप्त उद्देश्य से पूर्णतः अनजान बना रहे। इसी रणनीति के अंतर्गत इस्लामिक एजेंडे को बढ़ावा देने के लिए हिंदू धार्मिक आयोजनों, मठों और मंदिरों तक में गानों के माध्यम से सांस्कृतिक विष फैलाया जा रहा है।

हिंदू समाज अपनी धार्मिक भावनाओं के प्रति अत्यंत संवेदनशील है, और उसके मठों-मंदिरों में लगने वाले मेले सामाजिक और धार्मिक एकता के केंद्र बिंदु रहे हैं। प्राचीनकाल से ही इन आयोजनों के माध्यम से समाज में धार्मिक चेतना जागृत होती रही है। मेले केवल भक्ति और आस्था के केंद्र नहीं होते, बल्कि सामाजिक समस्याओं के समाधान हेतु विचार-विमर्श का माध्यम भी बनते रहे हैं। संकट या महामारी के समय संपूर्ण समाज एकजुट होकर समाधान की दिशा में अग्रसर होता था। किन्तु वर्तमान समय में हिंदू मेलों और धार्मिक आयोजनों में सुनियोजित ढंग से ऐसे गीतों का समावेश किया जा रहा है, जिनके माध्यम से इस्लामिक विचारधारा को बढ़ावा दिया जा सके। गायकों द्वारा धार्मिक गीतों के बीच ऐसे शब्दों और संदर्भों को जोड़ा जाता है, जिनकी गहराई को भोला-भाला हिंदू समाज समझने का प्रयास नहीं करता। “अली का पहला नंबर” जैसे गीतों के माध्यम से धीरे-धीरे एक विशेष विचारधारा स्थापित करने का प्रयास किया जाता है, जिससे हिंदू धार्मिक आयोजनों की पवित्रता प्रभावित होती है। मंदिरों, मठों और संतों के समक्ष ऐसे गीतों का गायन किया जाता है, जिससे हिंदू समाज अंजाने में ही एक विशिष्ट विचारधारा की ओर आकर्षित होता जाता है। इस प्रकार के गीत केवल मनोरंजन के साधन मात्र नहीं होते, बल्कि इनके पीछे एक सुनियोजित एजेंडा कार्यरत होता है। यह एक प्रकार का सांस्कृतिक “स्लो पॉइज़न” है, जो हिंदू समाज की धार्मिक भावनाओं को धीरे-धीरे परिवर्तित करने और उसकी आस्थाओं को कमजोर करने का कार्य कर रहा है। हिंदू समाज को इस सांस्कृतिक अतिक्रमण के प्रति सजग और सतर्क रहने की आवश्यकता है, ताकि उसकी धार्मिक एकता और परंपराएं सुरक्षित रह सकें।