सम की सुनहरी रेत के नीचे छिपे डरावने राज

सम की सुनहरी रेत के नीचे छिपे डरावने राज

सुनसान और अपरिचित स्थान, चारों ओर अजीब वेशभूषा में लोग, और उनके बीच अपने परिवार की महिलाओं एवं बच्चों के साथ फँसे असहाय पर्यटक यह दृश्य किसी भंवर जाल में उलझे मेहमानों का प्रतीत होता है, जो वहाँ से निकलने का मार्ग खोजते हुए हताश होकर रोते, चीखते और चिल्लाते हैं।
हिंदू धार्मिक मेलों में स्लो पॉइज़न सांस्कृतिक अतिक्रमण की साजिश!

हिंदू धार्मिक मेलों में स्लो पॉइज़न सांस्कृतिक अतिक्रमण की साजिश!

स्लो पॉइज़न एक ऐसा प्रभावी अस्त्र है, जिसका प्रयोग इतने सूक्ष्म और योजनाबद्ध ढंग से किया जाता है कि जिसे इसका सेवन कराया जा रहा होता है, उसे इसका आभास तक नहीं होता। इसे व्यक्ति की आदत में शामिल करने के लिए उसमें रुचि उत्पन्न की जाती है, जिससे वह इसके पीछे छिपे गुप्त उद्देश्य से पूर्णतः अनजान बना रहे। इसी रणनीति के अंतर्गत इस्लामिक एजेंडे को बढ़ावा देने के लिए हिंदू धार्मिक आयोजनों, मठों और मंदिरों तक में गानों के माध्यम से सांस्कृतिक विष फैलाया जा रहा है।
मरु महोत्सव में जैसलमेर की संस्कृति पर सूफियाना तमाचा

मरु महोत्सव में जैसलमेर की संस्कृति पर सूफियाना तमाचा

कम्युनिस्ट लोग फैज की प्रसिद्ध गजल गाते हैं "नाम रहेगा अल्लाह का" तो वे वास्तव में इस्लाम की प्रशंसा में फतेह मक्का के मजहबी गीत ही गाते हैं, कहीं कोई धर्मनिरपेक्षता नहीं है। जैसलमेर में 10 फरवरी की रात मरुमेला के उपलक्ष्य में रंगारंग कार्यक्रम हुआ।
डिजिटल मीडिया से समाज में अभद्रता का ज़हर।

डिजिटल मीडिया से समाज में अभद्रता का ज़हर।

एक ओर भारत देश महाकुंभ के पावन पर्व में भक्ति और आस्था के रस में डूबा हुआ है, जहां भारतीय संस्कृति की दिव्यता विश्वपटल पर अपनी छाप छोड़ रही है। वहीं, दूसरी ओर आजकल कुछ तथाकथित कंटेंट क्रिएटर्स समाज में अभद्रता की सभी सीमाएँ लांघ रहे हैं। यह एक अत्यंत विचारणीय विषय है।
मरु महोत्सव में खुहड़ी के साथ अन्याय क्यों ?

मरु महोत्सव में खुहड़ी के साथ अन्याय क्यों ?

मरु महोत्सव, थार के सुनहरे रेगिस्तान में आयोजित होने वाला एक भव्य सांस्कृतिक उत्सव है, जो न केवल जैसलमेर की पहचान है, बल्कि इसकी लोकसंस्कृति, परंपराओं और पर्यटन को भी बढ़ावा देता है। वर्षों से यह महोत्सव खुहड़ी में आयोजित होता आ रहा है, जहाँ ऊँचे-ऊँचे रेतीले धोरे, लोककला और संस्कृति अपने चरम पर होती हैं।
हिंदुओं संभल जाओ वरना संभल जैसे हालात हो जाएँगे।

हिंदुओं संभल जाओ वरना संभल जैसे हालात हो जाएँगे।

जागरूकता के सभी दावे, सुरक्षा के सभी आश्वासन और बड़े संगठनों के तमाम विस्तार के बावजूद मु^^^मानों को जो करना होता है वे कर लेते है।
थोड़ा निरपेक्ष होकर देखिए, वे अपना काम चुपचाप कर रहे हैं।
सिस्टम, समाज और विकास: जिम्मेदारी बनाम विशेषाधिकार

सिस्टम, समाज और विकास: जिम्मेदारी बनाम विशेषाधिकार

VIP व्यवस्था, सामाजिक संरचना, आर्थिक असमानता, और राजनीतिक विचारधाराओं पर आपकी बातों में एक ठोस तर्क है, लेकिन इस पर अलग-अलग दृष्टिकोण भी हो सकते हैं।
हिन्दू समाज: भीड़ से अनुशासित संगठन तक की यात्रा

हिन्दू समाज: भीड़ से अनुशासित संगठन तक की यात्रा

हिन्दू समाज में लाखों की भीड़ तो इकट्ठा हो जाती है, लेकिन अनुशासित संगठन के रूप में सामूहिक आचरण नहीं कर पाती। व्यक्तिगत रूप से बुद्धिमान और सक्षम होने के बावजूद सामूहिक व्यवहार में अव्यवस्था देखी जाती है।
सोशल मीडिया, AI और मनोवैज्ञानिक प्रभाव: एक चिंतन

सोशल मीडिया, AI और मनोवैज्ञानिक प्रभाव: एक चिंतन

आज के डिजिटल युग में, सोशल मीडिया हमारे जीवन का एक अभिन्न अंग बन चुका है। लेकिन क्या आपने कभी महसूस किया है कि यह प्लेटफॉर्म धीरे-धीरे नकारात्मकता का अड्डा बनता जा रहा है? हाल के दिनों में यह देखा गया है कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर नकारात्मक पोस्टों की भरमार हो गई है और सकारात्मक सामग्री की पहुंच (रीच) कम होती जा रही है। क्या यह मात्र एक संयोग है, या इसके पीछे कोई बड़ी योजना है ?
अति राजनीतिक चर्चा को हिन्दू जागरण समझने की भूल

अति राजनीतिक चर्चा को हिन्दू जागरण समझने की भूल

सोशल मीडिया के आगमन के साथ राजनीतिक जागरूकता और जानकारी में अभूतपूर्व वृद्धि हुई। लोग हर घटना पर अपने विचार व्यक्त करने लगे। इसके परिणामस्वरूप राजनीति पर चर्चा करने और स्वयं को राजनीतिक विशेषज्ञ समझने की प्रवृत्ति बढ़ी।